लेख-निबंध >> स्वैच्छिक कार्य और गाँधीवादी दृष्टि स्वैच्छिक कार्य और गाँधीवादी दृष्टिडी. के. ओझा
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मूलत: तरूणों को सम्बोधित गांधीवादी दर्शन पर आधारित पुस्तक
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मूलत: तरूणों को सम्बोधित प्रस्तुत पुस्तक गांधीवादी दर्शन और उससे प्रभावित तीन स्वैच्छिक आंदोलनों के बारे में लेखक के अनुभवों और अध्ययन का जीवंत चित्रण है। इसमें पहला आंदोलन- चिपको- उत्तराखंड में महिलाओं द्वारा जंगलों के संरक्षण के लिए शुरू किया गया। दूसरा आंदोलन बाबा आम्टे द्वारा कुष्टरोग के विरूद और तीसरा श्रीमती इला भट्ट द्वारा स्वतंत्र रोजगार करने वाली गरीब स्त्रियों को शोषण से बचाने के लिए शुरू किया गया।
किशोरावस्था से ही डी.के.ओझा (जन्म 1933, गुजरात) महात्मा गांधी की पत्रिकाओं, विशेष रूप से हरिजन बन्धु और हरिजन सेवक को बढ़े चाव से पढ़ते थे, जिन्होंने उनके मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी। अहमदाबाद के गुजरात कालेज से स्नातक की उपाधि लेने के बाद 1957 में श्री ओझा भारतीय प्रशासनिक सेवा में आ गये। 1987-88 में उन्होंने उपर्युक्त तीनों स्वैच्छिक आंदोलनों का गहन अध्ययन किया। वह गांधीग्राम रूरल इंस्टीट्यूट, जिला डिंडीगुल, तमिलनाडु में उपकुलपति भी रहे हैं। स्वैच्छिक आंदोलनों के बारे में लेखक के अनुभवों और अध्ययन का जीवंत चित्रण है।
किशोरावस्था से ही डी.के.ओझा (जन्म 1933, गुजरात) महात्मा गांधी की पत्रिकाओं, विशेष रूप से हरिजन बन्धु और हरिजन सेवक को बढ़े चाव से पढ़ते थे, जिन्होंने उनके मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी। अहमदाबाद के गुजरात कालेज से स्नातक की उपाधि लेने के बाद 1957 में श्री ओझा भारतीय प्रशासनिक सेवा में आ गये। 1987-88 में उन्होंने उपर्युक्त तीनों स्वैच्छिक आंदोलनों का गहन अध्ययन किया। वह गांधीग्राम रूरल इंस्टीट्यूट, जिला डिंडीगुल, तमिलनाडु में उपकुलपति भी रहे हैं। स्वैच्छिक आंदोलनों के बारे में लेखक के अनुभवों और अध्ययन का जीवंत चित्रण है।
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